एक खबरिया चैनल पर आज शाम दो लाइव शॉट देखकर मन दो तरह का हुआ॥ थोड़ा खिन्न और थोड़ा भयाक्रान्त। सचमुच ऐसा ही है या सचमुच ऐसा नहीं है। क्या जैसा है,,वैसा दिखता है? और जैसा दिखता है..वैसा है?????सवाल कुछ कौंधते हैं..बिंब कुछ उभरते हैं..प्रतिबिंब भी। शॉट क्या थे ये तो सुन लीजिए।शॉट-एकराजधानी का मंडावली इलाका...,,,एक औरत...बेचारी..औरतों के बीच घिरी हुई..तमाम तमाशबीन..उनमें पुरुष भी। पहले एक महिला ने चप्पल उतारी और ताबड़तोड़ उस महिला पर बरसानी शुरू कर दी, फिर कोई हाथ साफ करने से चूका नहीं, उस भीड़ में न महिलाएं और न ही पुरुष..सभी उसको बेतहाशा पीटते रहे..फिर क्या वह चैनल वालों के हाथ लग गई..बेचारी..फिर तो मामला ऑन-लाइन हो गया..कौन-कौन नहीं आया लाइन पर..किरन बेदी साहिबा भी आईं। तीन चेहरे दिखे पहला चेहरा भीड़तंत्र का..दूसरा न्यूज कॉर्पोरेट तंत्र और तीसरा संचालक तंत्र यानी व्यवस्था का। उलझन में हूं,,,सोच रहा हूं..व्यवस्था में खोट है (जहां महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील और सीएम शीला जी हैं,,,और शायद उस इलाके की एमएलए भी आधी दुनिया से ही बिलॉंन्ग करती हैं) या ये भीड़तंत्र की साइकोलॉजी है? कुछ आप ही सुझाएं....समाधान...
शॉट-दोएक गोल्डन ईगल..किसी लड़ाके विमान के मानिंद सांय...सांय...सांय कर आसमान से गलबहियां करता हुआ।..उसने थोड़ा नीचे की ओर रुख किया और एक छोटी सी पहाड़ी पर घास चर रहे बकरी के बच्चे को पंजे में दबोचकर उड़ चला। इस सेंसेशनल शॉट के साथ कैच वर्ड भी था..घाटी पर मंडराती मौत...मैं थोड़ा सहम गया..कहीं बाज इंसान के बच्चों पर न हमलावर होने लगें। शाम को दफ्तर जाने के लिए निकला तो आकाश की ओर ताका,,कहीं ऊपर मौत तो नहीं मंडरा रही है..बगल वाले भाईसाहब को भी ताकीद कर आया था कि वे भाभीजी से बता दें कि बच्चे जब खुले आसमान के नीचे खेल रहे हों तो वे एक लग्गी लेकर उनकी सिक्योरिटी में लगी रहें।