मंगलवार, 11 मार्च 2008

हाँ,हाँ, विदेश में ऐसे ही होतें हैं बंगला गाड़ी

मिस्सिसिपी जल रहा है, मिस्सिसिपी इज बरनिंग...... एक अंग्रेज़ी अखबार में मैंने पहले पन्ने पर लीड स्टोरी पैकेज पढी, स्टोरी का सार है कि भारत से एक साहब ये सपना संजोकर निकले कि उन्हें अमरीका में खूबसूरत सा बंगला, लक्जरी गाड़ी और आकर्षक सैलरी पैकेज मिलेगा, वहाँ पहुंचे तो उन्हें जेल से बदतर ज़िंदगी गुजारनी पड़ी,,जेल में तो कम से कम ताज़ा खाना मिल जाता है ,मगर वहाँ तो बासी भी सुकून से नहीं मिला। एक बाड़े में उन्हें और उनके जैसे २४ साथियों को कैद कर लिया गया था..ख़बर छपने के बाद भारत सरकार ने इसका संज्ञान लिया औरk अमेरिका इ से हस्तक्षेप करने को कहा गया गया है। खैर....ये एक झलक है बस, कैसे सात समंदर पार ज़िंदगी होती है ..कमोबेस यही हालात कनाडा, ब्रिटेन, दुबई, सौदी अरब, जैसे देशं में भी है सवाल बड़ाहै कि क्या हमें ग्लोबल विल्लेज के दौर में भी देश में बन्धकर रह ना चाहिए या फिर नए आकाश में उड़न भरनी चाहिए। बात विदेश की ही क्यों ...करें...apne desh men kaun sa pardesiyaon ko khuli hawa men saans lene diya ja raha hai ...

kawi rajesh joshi ke shabdon men kahen to

hamen hamare bachpan se judi har cheej se door le jaya gaya, hamen hamari galiyon, patiyon chaurahon se bahar nikala gaya..bahut tuchchi jarooraton ke badle cheena gaya hamse hamara itna kuchh,,kise se kahen to kahega vyarth hi bhawuk ho rahe ho tum..jagahon se payar karne kaa riwaj to kab ka khatm ho chuka hai..

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