सोमवार, 17 मार्च 2008

बुरा तो मानो होली है भइया..

हुल...हुल..हुल ..हुल हल्ला हुल हुल.....होली है भाई होली है...बुरा न मानो होली है..बुरा मान भी सकते हैं मने किकुछ न कुछ तो मानना ही पड़ेगा आपको..बुरा या भला..बुरा मानेंगे तो उसमें भी एक जुडाव छुपा होता है..वरना साहब सड़क चलते कौन किस से नाराज होता है..होता भी है तो मार ही डालता है। हम ख़बर नवीसों को अक्सर ऐसे किस्से मिलते हैं छपने को..कोई नाराज हो किसी से और फिर कोई उसे मनाये..गिले शिकवे साझा हों , फिर एलास्टिक के तन्तु के मानिंद खिंचाव हो और एक दूजे से फिर सटाक से चिपक जायें...अहा आहा..क्या कभी आपने ऐसा सुख महसूसा है...नहीं तो दुर्भाग्य॥
चलो देखते हैं कि पिछले ३१ सालों में कैसे बदली होली..मैं अब ३१ साल का हूँ.. सन ८३ कि होली मुझे याद है..हलकी हलकी धुंध सी स्मृति है..होली तब se ab badrang हुई है कि और चटख ..इस बारे में मनन कर रहा हूँ.. अब दिल्ली में हूँ..तब अपने आँगन मे था..लाल-पीली नीली काले धब्बे..हरे चटख रंगों वाली साड़ी पहनकर जब फागुन रानी आती थीं तो लगता था कि अपने साथ लाया हुआ उल्लास और उत्साह से भरा बक्सा उन्होंने खोल दिया जो पूरी फिजां में तैर जाती थी..ओफ्फो ,,,गज़ब की मिठास घुली रहती थी..पूरे माहौल में । जब मैं बच्चा था तो फागुन रानी मुझे अपनी माँ जैसी लगती थीं, किशोर हुआ तो सुंदर लड़की, फिर प्रेयसी॥
''''होली खेलें रघुबीरआ अवध में होली खेलें रघुबीरा...'''''सुबह से ही ढोल मजीरे लेकर मस्त फाग की टोलियाँ घर-घर जाकर धमाल मचाती। अब शोर थम गया है..पिता जी नहीं रहे..पुद्दन चाचा भी और सरजू दादा..भी उमर पूरी कर चले गए..कौन बजाये अब ढोल..परधान जी के लौंडे ने चन्दा इकट्ठा किया..ऑर्केस्ट्रा और dजे मंगाया..वहाँ बवाल हो गया....थम गया सिलसिला
सिर फूट गये कई लोगों के पुलिस आई गांव में फौजदारी हो गई। जमाना खराब हो गया॥कोई घर से बाहर नहीं निकलता होली के दिन..आरे सब घुप्प..बंद का हो चचा होली वोली न होए..आरे हटो कौन खेलने जाए लंफूसों के बीच में सब के सब साले दारू पिए हैं..और जो दारू पिए हैं होली तो उन्हीं की है..यानी जो मदहोश हैं...बे...होश हैं..होश में नहीं हैं तो होश वालों की होली कैसे होगी...
हमने तो रंग घोला और खुद ही आपने ऊपर डाल लिया॥कालिख उनके लिए रख छोड़ी है जो हमारे त्यौहारों को स्याह कर रहे हैं..कमीने लोग..
''''गंध नहीं है आब बची टेसू के फूलों में..दुर्गध फैला रहे हैं सिरफिरे 'तमाम..'''

3 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया लिखा।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

आपने बिलकुल सही लिखा है होली का रंग आजकल कुछ ऐसा हो चला है कि आनंद और उल्लास की जगह कसमसाहट ज्यादा होने लगी है..

मनीष राज मासूम ने कहा…

bhai saab kya khoob likha hai,emotional kar diya