शनिवार, 15 अगस्त 2009

बैकग्राउंडर

नई दिल्ली हाउस की लिफ्ट नीचे की ओर सरक रही थी और कलेजा ऊपर की ओर। एचआर वाली मैडम को इस्तीफा दे आया था। नई नौकरी का जुगाड़ पहले ही हो गया था। साल भर हिचकोले खाता रहा, टीवी में। नए-नए काम खूब सीखा। खुद को निचुड़ने से रोकने की कभी कोशिश तक नहीं की। छापेखाने से कुछ ज्यादा ही मोह-ममता हो गई थी या फिर नए ट्रैक पर रफ्तार नहीं बना पा रहा था, कुछ साफ नहीं है। वैसे भी मैं कौन सा बहुत बड़ा विचारक हूं कि हर कदम तर्कपूर्ण ही उठाऊं। जिंदगी का हर सफर कुछ न कुछ सीख देता है। ये सफर भी बड़ा ही रोमांचक रहा। कुछ यादों पर वक्त की धूल की परतें चढ़ गईं हैं, उन्हें झाड़ रहा हूं। किसी को अच्छा लगा तो अच्छा, बुरा लगे तो भइया माफी देना, दुनिया गोल है।पहला दिन था, चैनल की नौकरी का। ईपी साहब न्यूज़ रूम में सबसे मिलाने ले गए, ये हैं फलां जी, हमारे अमुक विभाग के हेड,,,मुझे पता नहीं कहां से सुनाई पड़ा,,,ऑरक्युट हेड... संयोग से उनने वही खोल भी रखा था। मैंने सोचा ये कौन सा पद है? अच्छा..ऑरक्युट के जरिए लाइन-अप करते होंगे रिपोर्टरों को या फिर कंटेंट प्रोवाइडर्स को...मैंने अपना ग्यान लगाया। हालांकि बाद में उनका पद जान पाया तो खुद पर बड़ी हंसी आई। फिर आगे बढ़े सबसे मिलाते गए ईपी सर। मुझे रनडाउन डेस्क, जहां खबरों को चलाने का क्रम और हेडलाइन बनती है, पर बैठकर कामकाज सीखने को कहकर चले गए वे। मैं पीछे एक बेंच पर बैठ गया। एक मोहतरमा थीं, होंठ पर हल्की लिप्सिटक और चेहरे पर उससे कई गुना कॉन्फिडेंस पोते हुए। कंप्यूटर पर कुछ टाइप कर रही थीं, पलटीं और बोली हुं,,वहां क्या कर हो? ऐसे कैसे सीखोगे? मेरा मुंह उस वक्त देखने लायक रहा होगाहोगा। बोली-इधर आओ। कहां थे इससे पहले? मैंने बोला, जी अखबार में।,,,ऐं,,अखबार में,,अच्छा देखो ये टीवी है? लैंगुवेज जरा ठीक रखना। एसटीडी पैकेज क्या है? एसटीडी वीओ शॉट,,सॉट ,,,शॉट सॉट? मैं क्या हेडिंग, सब हेडिंग, क्रासर, फ्लैग, इंट्रो, ७२ प्वाइंट हेडिंग, लीड-बॉटम, फिलर वाला बंदा ये सब क्या जानूं। मैंने ना में सिर हिलाया बोला। हफ्ते भर में जान लूंगा मैडम जी। बस क्या था बगल में बैठे एक बड़े बॉस मुंह की गिलौरी संभालते हुए चीख पडे...अट्ठारह साल में मैं नहीं सीख पाया टीवी और ये हफ्ते भर में सीख लेंगे। मैं समझ गया॥ये बड़ी चीज हैं। वे वाकई बड़ी चीज हैं। बड़े-बड़े संपादकों को बूशट खरीद कर दिलवाई है उनने।

खैर, मैं शांत भाव सबको देखता-समझता रहा। मुझे क्या करना है? ये जल्दी सीखने की कोशिश करने लगा। जितना बेवकूफ हूं, उससे ज्यादा अपने को शो करता रहा। जो लोग संजीदा थे वो ताड़ गए थे मुझे। नई-नई दोस्ती हुई। सबसे दोस्ती हुई। कभी कभी रात १० बजे का दफ्तर पहुंचा सुबह १० बजे छूटा। एक बार नाइट शिफ्ट के बाद जब अगले दिन सुबह साढ़े दस तक रिलीव नहीं हुआ तो एक बॉस को फोन किया। उनकी प्रतिक्रिया थी..तिवारी को तो सुबह से ही खुजली होने लगती है? हालांकि बाद में उन्हें बड़ी खुजली हुई और उन्हें विदा होना पड़ा। ये सब मुझे नहीं लिखना चाहिए। मेरे बारे में कंपनी की क्या फीड बैक है? मुझे नहीं पता। कोशिश रही कि कोई उंगली न उठाने पाए। मेरे जाने के बाद भी कोई उंगली न उठाए। यही मेरा कैरेक्टर रोल होगा। कुछ बड़े मेहनती लोग हैं, बेहद सकारात्मक नजरिया है उनका। मेरा नर्सरी स्कूल ये टीवी फलता-फूलता रहे। अब नई पारी शुरू की है। हे ईश्वर अब, कहीं नौकरी के लिए मत भटकाना मुझे। सीवी अपडेट करते-करते थक चुका हूं, टेस्ट और इंटरव्यू देते भी। रिलीविंग लेटर और ज्वाइनिंग लेटर लेते भी। कोई कह देगा कि नौकरी तलाश लो कहीं, तो तलाशूंगा। नहीं तो तराशता रहूंगा खुद को। आखिर कितने टुकड़े करूंगा मन के।

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

ए भाई बहुत बढ़िया लिखा है ये बॅकग्राउंडर,लेकिन एक कमी छोड़ दी,हमने इसमे कही जागेह नही पाई!और कुछ नही तो अधरतिया माहौल में दरुबाज़ी की बातें ही लिख दी होती!........चियर्स

Bhupendra Singh ने कहा…

बहुत बढ़िया...ये टीवी था कि नहीं इसमें भी कन्फ्यूज़न है...वैसे मोहतरमा को तो समझ रहें हैं...पर ये अठारह साल में टीवी न सीखने वाला बन्दा कौन था पवन जी...शार्ट में नाम बताइयेगा...